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Char Raste:

​चार रास्ते:


मत्स्य देश का राजा योग्य और दयालु था। उसका पुत्र भी वैसा ही था । राजकुमार के चार मित्र थे। ये पाँचों रोज अपने अपने घोड़ों पर सवार हो, घूमने निकल जाते थे। राजधानी से कुछ दूर एक झील थी। वहाँ चार रास्ते, चार दिशाओं में जाते थे। राजकुमार अपने मित्रों के साथ झील तक जाता फिर राजधानी लौट आता।

प्रतिदिन की तरह एक दिन पाँचों मित्र झील तक पहुँचे तो राजकुमार बोला- हम लोग यहाँ आकर ही लौट जाते हैं। कभी इन रास्तों पर जाकर भी देखना चाहिए।

राजकुमार के विचार से चारों मित्र सहमत हो ने गए। एक मित्र राजकुमार से कहा- हम चारों मित्र अलग-अलग दिशाओं में जाते हैं। आप यहीं ठहरकर हमारी प्रतीक्षा करें।

राजकुमार ने बात मान ली। चारों मित्र अलग-अलग दिशाओं में चले गए। दिन ढलने लगा।

​सांझ घिर आई। मगर राजकुमार का कोई भी मित्र लौटकर नहीं आया। अंधेरा होने लगा तो राजकुमार अकेला ही राजधानी लौट आया।

राजकुमार रातभर मित्रों की चिन्ता में डूबा रहा। सवेरे उसने मित्रों का पता लगवाया। मगर कुछ पता न चला। राजकुमार अपना घोड़ा दौड़ाता हुआ उसी चौराहे पर जा पहुँचा जहाँ प्रतिदिन जाया करता था। वहीं इन्तजार करता रहा। शाम हो गई। मित्र नहीं आये। राजकुमार निराश होकर लौट आया।

इस प्रकार एक माह बीत गया। राजकुमार के मित्र नहीं लौटे। आखिर एक दिन घोड़े पर सवार हो, उन चार दिशाओं में से एक दिशा में राजकुमार स्वयं ही बढ़ चला। चलते-चलते काफी दूर निकल गया। एकाएक उसके कानों में किसी के कराहने की आवाज़ आई। एक बूढ़ा व्यक्ति जमीन पर पड़ा था। राजकुमार उसके पास गया। बूढ़े व्यक्ति के शरीर पर घाव थे। वह बेहोश-सा पानी मांग रहा था। राजकुमार पास की एक झील से पानी लाया। बूढ़े व्यक्ति को पानी पिलाया। पानी पीकर बूढ़ा व्यक्ति उठ बैठा।

राजकुमार बोला - बाबा, आप मेरे साथ चलिए, मैं आपका इलाज करवाऊंगा।

अचानक राजकुुमार को अपने मित्रों की याद आई और बोला- बाबा यह रास्ता किधर जाता है?

बूढ़ा व्यक्ति बोला- बेटा, मैं अंधा हूँ। देख नहीं सकता, यह रास्ता किधर जाता है? इतना जरूर जानता हूँ कि तुम अपने चारों मित्रों की तलाश में सही रास्ते पर ही जा रहे हो।

यह सुनकर राजकुमार चौंक पड़ा और बोला

​आपको कैसे पता?

यह बाद में बताऊंगा। पहले अपने मित्रों की कहानी सुनो। जिनकी खोज में तुम जा रहे हो। तुम्हारा

​एक मित्र पूरब दिशा में गया। उसे रास्ते में सोने के सिक्के पड़े मिले। वह उन्हें उठाता गया और आगे बढ़ता गया। वह अभी भी सोने के सिक्कों की तलाश में भटक रहा है।

-और दूसरा मित्र राजकुमार ने पूछा।

-उसने एक हिरणी और उसके बच्चे को देखा। हिरणी अपने बच्चे को प्यार कर रही थी। उसने बच्चे को तीर से मार दिया। हिरणी के शाप से वह पत्थर का बुत बन गया।

बूढ़ा व्यक्ति फिर बताने लगा- तुम्हारा तीसरा मित्र चलते-चलते एक गाँव में पहुँचा। डाकू गाँव को लूट रहे थे। गाँववालों ने उससे मदद मांगी लेकिन उसने गाँववालों की सहायता नहीं की। उल्टा डाकुओं के साथ मिलकर आज भी लूटमार कर रहा है।

चौथे मित्र के बारे में पूछने पर बूढ़ा व्यक्ति बोला- तुम्हारे चौथे मित्र को मेरे जैसा एक बूढ़ा व्यक्ति मिला। वह बहुत बीमार था। पानी मांग रहा था लेकिन बूढ़े व्यक्ति को पानी न देकर, वह आगे बढ़ गया। अब वह एक घने जंगल में रास्ता भटक गया है व इधर-उधर घूम रहा है।

लेकिन आप यह सब कैसे जानते हो?- राजकुमार ने हैरान होकर पूछा।

-राजकुमार में न तो अंधा हूँ और न ही घायल।

मेरी ओर देखो।

राजकुमार ने देखा, उसके सामने एक स्वस्थ युवक खड़ा है।


​वह बोला- मैं एक जादूगर हूँ। मैं यहाँ रहकर योग्य आदमी की तलाश में था जिसे मैं अपनी कला सिखा सकूं। मेरी कसौटी पर केवल तुम ही खरे उतरे हो।


-लेकिन मैंने ऐसा क्या किया है?


-बहुत मामूली काम लेकिन जिसे अक्सर लोग नहीं करते। तुम चाहते तो मुझे छोड़कर अपनी राह जा सकते थे। फिर भी तुमने ऐसा नहीं किया। इसलिए तुम मेरी विद्या को सीखने के योग्य हो। इस विद्या की सहायता से तुम अपने मित्रों को वापस ला सकते हो।

यह कहकर जादूगर ने उसे अपनी विद्या सिखा दी। जब राजकुमार उन विद्याओं में पारंगत हो गया तो जादूगर गायब हो गया। राजकुमार ने उसके बाद अपने चारों मित्रों को वापस पा लिया।

-कहानी की सत्यता तो जो भी रही होगी परन्तु यह सत्य है कि जिसके मन में दूसरों की सहायता करने की तत्परता रहती है व दिल का सुन्दर होता है उसे सभी लोग स्वयं ही सब कुछ देने को तैयार रहते हैं।


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New Nirankari Sakhi,
 By,  Khushi Nirankari
        khushi@tuhinirankar.ml


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