क्रोध का घातक परिणाम:
एक साधु भिक्षा में प्राप्त अन्न से अपनी
उदरपूर्ति करते हुए सदा प्रभु-भजन में लीन रहते। एक दिन वे गाँव के धनी सेठ के यहाँ भिक्षा मांगने पहुंचे। सेठ ने साधु को भिक्षा दी और बोला- महात्मा जी मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।
साधु ने कहा- पूछो।
सेठ ने कहा- लोग लड़ाई-झगड़ा क्यों करते हैं?
साधु कुछ देर चुप रहे और फिर बोले- मैं
यहाँ भिक्षा लेने आया हूँ। तुम्हारे मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने नहीं। इतना सुनते ही धनी सेठ क्रोधित हो गया। स्वंय पर से नियंत्रण खो बैठा और क्रोध में साधु को खूब खरी-खोटी सुनाता रहा। साधु चुपचाप सुनते रहे। उन्होंने कोई उत्तर
नहीं दिया।
धनी सेठ का क्रोध शांत होने पर साधु ने उसे समझाते हुए कहा- भाई, जैसे ही मैंने तुम्हें तुम्हारी पसंद के विपरीत बातें बोलीं, तुम्हें क्रोध आ गया और मुझ पर चिल्लाने लगे यदि मैं भी क्रोधित हो जाता तो हमारे बीच बड़ा विवाद संभव था। यही लड़ाई-झगड़ों का प्रमुख कारण है।
क्रोध ही सभी विवादों का मूल कारण है और शांति हर विवाद की समाप्ति का उपाय है। यदि हम जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो क्रोध को नियंत्रित करना होगा इसके लिए प्रतिदिन प्रभु-परमात्मा का स्मरण करें।
अब जो बात हम करने जा रहे हैं वह है तो कठिन परन्तु असम्भव नहीं। हमें घर-परिवार, कार्यस्थल पर सदा शांत रहना चाहिए। यदि दूसरा कोई क्रोध करे भी तो हम उत्तर शांति से ही दें। जैसे ही हमने शांति का दामन छोड़ा और क्रोध किया तो छोटी-सी बात भी बड़ी हानिकारक बन जाया करती है।
धन निरंकार जी