Parmatma hi Sab kuch hai || Nirankari Vichar

परमात्मा ही सब कुछ है

जड़ चेतन सब परमात्मामय है। परमात्मा के सिवाए जगत में अन्य कुछ है ही नहीं सद्गुरु से प्राप्त ज्ञान दृष्टि से संसार को देखना व विचरण करना ही श्रेष्यस्कर है।


ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत। 

तेन त्यक्तेन भुन्जीथा माँ गृधः कस्यस्विद्धनम।

ईशावास्योपनिषद का यह मन्त्र हम बचपन से सुनते व पढ़ते आ रहे हैं पर आज भी इसे ढंग से आत्मसात् नहीं कर पाए। परमात्मा अगर समस्त सृष्टि में व्याप्त है और यही रचनहार भी है। तो कोई पदार्थ जड़ कैसे कहा जा सकता है? क्या परमात्मा जड़ है? पृथ्वी को ही ले लें क्या पृथ्वी जड़ है! यदि जड़ है तो इसमें बीज डालने पर पेड़ पौधे कैसे उगने लग जाते हैं! जड़ से जड़ ही उत्पन्न होना चाहिए या कुछ नहीं उत्पन्न होना चाहिए पर जीवन कैसे उत्पन्न होने लगता है?


सद्गुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान के बाद ये तो स्पष्ट हो गया कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है, इसी ने अनन्त ब्रह्माण्डों की रचना की है, यही इसको पोषित कर रहा है और लगातार अपने में समेटता भी जा रहा है। इस परमात्मा की अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार लोग व्याख्या करते रहते हैं।


पृथ्वी को किसने बनाया? बीज किसने बनाया? यदि किसी मानव ने कभी भी कुछ भी बनाया होता तो कहीं न कहीं उस मानव की चर्चा ज़रूर लिखी मिलती पर आज तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। बीज भी परमात्मा का और पृथ्वी भी इसी की। इसी की शक्ति से बीज पृथ्वी में पड़ कर, पानी पाकर कोंपल, फिर पौधा, फिर वृक्ष बन जाता है फिर उसी में फूल फिर फल और फिर फल से बीज बनता है और एक चलचित्र की भाँति चक्र घूमता जाता है। यही संसार है जो ये स्वंय है। इस संसार का एक कण भी हम नहीं बना सकते, जिसे लोग जड़ कहते हैं फिर चेतन को हम क्या जानें। लीला में जड़ चेतन सब कुछ ये स्वय


ही है। कृपा करें कि हम इसे आत्मसात् कर पायें। ईश्वर ने संसार बनाया तो क्या वांछित पदार्थ कहीं बाहर से आया या सब कुछ इसकी अपनी शक्तियों का रूपांतरण ही है। ज्ञान सिखाता है कि सब कुछ यही है इसीलिए तुलसीदास जीने लिखा- सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी। कृपा करें मैं इसे आत्मसात् कर पाऊँ।


वचन देने के बाद भी कि तन, मन, धन निरंकार का है हम इसे आत्मसात् न कर पाए और सुख-दुख का अनुभव करते रहे। सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज से प्रार्थना है कि हम कमजोर बच्चों पर कृपा करें कि हम आपकी शिक्षानुसार इसे आपका मानकर आनंदपूर्वक भरपूर उपयोग तो करें पर अति संग्रह करने की चेष्टा न करें और यही उपरोक्त मन्त्र में भी हज़ारों वर्षों पहले सिखाया गया था। हम अपने भविष्य के लिए या संतान के लिए संचय करते हैं पर समझ नहीं पाते कि अगले पल का भी पता नहीं कि क्या होगा और संतान के रूप में कौन सी आत्मा आएगी?


हमें भक्ति का दान मिला कि हम हर समय इसमें लीन रहें। और संसार से अनासक्त हों, जिससे मुक्त हो सकें और मानव जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकें। निरंकार से जुड़कर संसार से विमुख होना आसान है पर संसार से विमुख होकर निरंकार से मिलना कठिन है क्योंकि संसार से मन हटना ही नहीं चाहता और मन पर हमारा वश चलता नहीं। मन तो निरंकार का है और जब मन निरंकार से मिलता है तो निरंकार के वश में हो जाता है और आत्मा संसार से विरक्त होने लगती है। कृपा करें कि हम मुक्त अवस्था में जीवन यापन कर सकें।


सद्गुरु माता जी ने असीम कृपा की है कि इस विषम काल में भी शब्द वरदान देकर हमारी भक्ति को लगातार बनाए रखा है। अन्यथा हम कमजोर जीव कर भी क्या सकते हैं। सद्गुरु माता जी के चरणों में विनम्र व करूण प्रार्थना है कि हमें बख्श लीजिए और अंतिम स्वाँसों तक अपनी कृपा बनाए रखिए।

धन निरंकार जी।।


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