ऐ मेर सतगुरु...
ऐ मेरे सच्चेपात्शाह...
आपकी रहमतों का कोई अंत नहीं है।
जैसे आपका निराकार स्वरूप अनंत है,
वैसे ही आपके साकार स्वरूप की मेहरबानियाँ भी
अनगिनत हैं।
आपके जैसा दयालु,
आपके जैसा मेहरबान
ना कोई था, ना कोई है, और ना ही कोई होगा।
ऐ मेरे सतगुरु...
जब से आप सतगुरु रूप में प्रकट हुए हो,
आप बिना थके चलते जा रहे हो,
हर गाँव, हर शहर, हर देश में जाकर
सत्य की आवाज़ को जन-जन तक पहुँचा रहे हो।
जहाँ भी जाते हो, सबके लबों पर मुस्कान छोड़ आते हो।
आपका ये समर्पण,
आपकी ये सेवा, आपका ये तप —
बिना किसी प्रचार भाव के,
सिर्फ इंसानियत के भले के लिए हैं।
आपको अपनी नहीं, इस सारे संसार की चिंता है।
आप ही सतगुरु हो, आप ही माँ हो —
और तीनों लोकों के मालिक भी आप हो।
आप ही तो ये निरंकार भी हो,
जो कण-कण में बसे हो, और फिर भी हमारे सामने
साकार रूप में विराजमान हो।
ऐ मेरे दातार,
आप ही हमें ब्रह्मज्ञान देकर हमारे मूल से जोड़ते हो।
आप ही हमें अंधेरे से निकाल कर, रोशनी में लाते हो।
दुनिया के दुखों से थक कर,
जब मैं आपकी गोद में बैठता हूँ —
हर दर्द को दूर और सुकून ही सुकून पाता हूं।
ऐ मेरे सतगुरु,
आपकी ही रहमत मेरी इन साँसों में छाई है।
आपने ही मुझे संभाला है, सँवारा है, बचाया है।
आप ही मेरे मालिक हो, मेरे रहबर हो, मेरे मार्गदर्शक हो।
आप वो रहमत की बारिश हो,
जो बंजर दिलों को भी हरियाली दे देती है।
आप वो दाता हो,
जो गुनहगारों को भी अपनी गोद में बिठा लेते हो —
बिना कोई सवाल पूछे, सिर्फ अपनी रहमत से।
हमें इबादत का सुरूर,
और खिदमत का जुनून दे दो,
हमारा जीवन ऐसा बना दो,
कि आपके सत्य और आपकी सेवा में
हर श्वास गुजर जाए।
ऐ मेरे खुदाया,
जब हम कमजोर पड़ जाएँ तो हमारी ताकत बन जाना।
जब हम थक जाएँ तो हमारी पनाह बन जाना।
जब हम मायूस हो जाएँ तो हमारी उम्मीद बन जाना।
और जब हम भटक जाएँ तो हमारा रहबर बन जाना।
आप से बड़ी कोई सरकार नहीं,
ना ही कोई दरबार है —
जो भी हाथ आपके दर, दुआ के लिए उठे हैं,
उन्हें खाली मत लौटाना।
मैं दासों का दास हूँ, और आप सहंसाओं के सहंसा।
मुझमें तो कुछ भी नहीं —
न शक्ति, न सद्बुद्धि, ना ही सामर्थ्य।
आप ही कायनात को चलाते हो,
आप ही मेरे अंतर्मन की गति को जानते हैं।
सच कहूँ तो मैं आपके जैसा कभी बन ही नहीं सकता,
मगर आपके असीम गुणों का
सिर्फ एक कण भी मेरे भीतर आ जाए,
तो मेरा भी उद्धार हो जाए।
और वो कण भी आप ही मुझे दे सकते हो —
क्योंकि आप रहमतों के मालिक हो,
आकाओं के आका हो।
आप ही मेरे लिए सब कुछ हो।
ऐ मेरे सतगुरु...
आपके सिवा और कोई दर नहीं है,
आपके सिवा और कोई रहनुमा नहीं है।
आपकी रहमत ही मेरी पूँजी है।
उसी में मुझे पनाह दे दो।
मैं और कुछ नही चाहता।
आप तो मेरे बन चुके हो।
बख्शीश करो,
कि मैं आपका बन जाऊं।
मैं आपका बन जाऊं..
मेनू बख्श लो...
मेनू बख्श लो...
मेनू बख्श लो...
Artical written By Utkarsh Nirankari, Also Featured In Nirankari Amrit Kalash Episode 30 in their Own Voice..
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Dhan Nirankar Ji