Nirankari Hai... || New Nirankari Poem By Gulshan Ji


सुनने वाले सुन लेते हैं
कहने वाले कह जाते हैं
रूकने वाले रूक जाते हैं
बहने वाले बह जाते हैं

गंगा की निर्मल धारा ने
चट्टानों से हार न मानी
अगल-बगल से होकर बह गई
सागर से मिलने की ठानी

टकराव है दुःख का कारण
प्रेम, प्यार से रहना सीखो
सुख आए तो जरना सीखो
हर दुःख को तुम सहना सीखो

कर्तापन की बातें छोड़ो
जो होता है हो जाने दो
महाचेतना, महाशून्य में
अपनेपन को खो जाने दो

गन्दा नाला जिस दिन आकर
संग गंगा के मिल जाता है
पल में गंगा बन जाता है
सहजभाव से खिल जाता है

तुम मिटा दो अपनी हस्ती
बस्ती में हरियाली कर दो
करो समर्पण प्रभु द्वार पर
जीवन में खुशहाली भर दो

कुछ नहीं अपना पास तुम्हारे
हर इक चीज उधारी है
मान, तकब्बर भूल गया जो
वो 'गुलशन' निरंकारी है




This Poem Officially Written by Gulshan Ji Nirankari, This Video Audio Taken by Utkarsh Nirankari..
Dhan Nirankar Ji

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