सुनने वाले सुन लेते हैं
कहने वाले कह जाते हैं
रूकने वाले रूक जाते हैं
बहने वाले बह जाते हैं
गंगा की निर्मल धारा ने
चट्टानों से हार न मानी
अगल-बगल से होकर बह गई
सागर से मिलने की ठानी
टकराव है दुःख का कारण
प्रेम, प्यार से रहना सीखो
सुख आए तो जरना सीखो
हर दुःख को तुम सहना सीखो
कर्तापन की बातें छोड़ो
जो होता है हो जाने दो
महाचेतना, महाशून्य में
अपनेपन को खो जाने दो
गन्दा नाला जिस दिन आकर
संग गंगा के मिल जाता है
पल में गंगा बन जाता है
सहजभाव से खिल जाता है
तुम मिटा दो अपनी हस्ती
बस्ती में हरियाली कर दो
करो समर्पण प्रभु द्वार पर
जीवन में खुशहाली भर दो
कुछ नहीं अपना पास तुम्हारे
हर इक चीज उधारी है
मान, तकब्बर भूल गया जो
वो 'गुलशन' निरंकारी है
Dhan Nirankar Ji